प्राचीन भारतीय कथा-साहित्य

प्राचीन भारतीय कथा-साहित्य-

कथा, यह शब्द सुनकर किसे आनन्द की अनुभूति नहीं होती है। बच्चें क्या, प्रौढ-अवस्था वाला व्यक्ति भी कथा सुनने में अरुचि नहीं रख पाता है। यहाँ पर यह भी तर्क नहीं दे सकते हैं कि कोई बेकार व्यक्ति ही कथा सुनना तथा सुनाने का कार्य करता है। मैं तो यह कहता हूँ कि कथाओं से हम घिरे हुए है। शायद ही कोई मनुष्य जाति का प्राणी होगा जिसने कथा का आनन्द न लिया हो।

        कथा यह शब्द किसी समुदाय या संस्कृति के अधीन नहीं है। जहाँ प्राणियों का निवास रहा है वहाँ कथा ने स्वतः अपना विकास किया है। भारतवर्ष जहाँ हजारों संस्कृति एक साथ पल रही है उसकी तो बात ही अलग है। यहाँ तो कथा का भण्डार है, और क्यों न हो ? वेदकाल से ही साहित्य में कथा को पूर्ण स्थान प्राप्त हो रहा है। यदि वेद की ही बात करें तो अधिकतर रहस्य को किसी न किसी कथा के माध्यम से ही समझाया है। चाहें यम-यमी संवाद की बात करें या इन्द्र-वृत्र के युद्ध की.... हर पहलू को कथा से ही समझाने का प्रयास किया है। वेद के अनन्तर ब्राह्मण ग्रन्थों, उपनिषदों, पुराणों, आर्षकाव्यों आदि में कथा का निरन्तर विकास हुआ जिसका फल यह हुआ कि परवर्ती आचार्यों के पास कथा साहित्य लिखने की भरपूर सामग्री एकत्रित हो गई। क्योंकि भारतीय इतिहास की प्रथम भाषाओं में संस्कृत, प्राकृत तथा पालि का वर्चस्व था जिसके कारण  अधिकांश कथा साहित्य इन्हीं भाषाओं के अधीन है।

        यदि हम प्राचीन भारतीय कथा साहित्य के स्वरूप की चर्चा करें तो यह बताना दुष्कर होगा कि कथा साहित्य के कितने प्रकार है। हालांकि बलदेव उपाध्याय जी ने समझाने की दृष्टि से कथा साहित्य को चार भागों में बाँटा है-

1.   अद्भुत कथा (Fairy Tales)

2.   लोककथा (Marchen)

3.   कल्पित कथा (Myths)

4.     पशु कथा (Fables)

 

उन्होंने व्यावहारिक स्तर पर भी इसके विभाजन का सफल प्रयास किया। उनके अनुसार नीतिकथा तथा लोककथा इन दो भागों में सम्पूर्ण कथा साहित्य का समावेश किया जा सकता है। इसमें अद्भुत तथा कल्पित कथा लोककथाओं के अन्तर्गत ही आ सकती है।

 

प्राचीन संस्कृत कथा साहित्य के मुख्य कथा-संग्रह

 

1.   पञ्चतन्त्र- कथा साहित्य की सबसे प्रसिद्ध पुस्तक पञ्चतन्त्र है। विश्व में लगभग ५० भाषाओं में पञ्चतन्त्र का रूपान्तर किया जा चुका है
। इसके रचनाकार का नाम चाणक्य अथवा विष्णुशर्मा है। इस ग्रन्थ की उपस्थिति लगभग ३०० ई.पू. में विद्यमान थी। इतनी प्राचीन रचना होने के कारण आज इसका मूल पाठ उपलब्ध नहीं है। विद्वानों ने इसके मूल पाठ के संस्करण में अनेक परवर्ती ग्रन्थों का आश्रय लिया जिनमें पञ्चतन्त्र की कथाओं का संग्रह है। पंचतन्त्र के संस्करण में डॉ. हर्टल तथा एडगर्टन का नाम सर्वोपरी है। पञ्चतन्त्र के संस्करण बनाने में निम्नलिखित रचनाओं का आश्रय लिया है-

a.    तन्त्राख्यायिका

b.   सरल पञ्चतन्त्र

c.    पञ्चाख्यानक

d.   दक्षिणी पञ्चतन्त्र

e.    नेपाली पञ्चतन्त्र

f.     हितोपदेश

g.   उत्तर-पश्चिमीय संस्करण

h.   पहलवी संस्करण

पञ्चतन्त्र ग्रन्थ की रचना के विषय में वर्णन है कि महिलारोप्य के राजा अमरशक्ति ने अपने तीन पुत्रों को शिक्षा देने के लिए विष्णुशर्मा के पास ६ माह रखा था। विष्णुशर्मा ने ५ मुख्य कथाओं के साथ अन्य उपकथाओं से इन राजकुमारों की शिक्षा दी थी। यही पाँच कथा इसके विभाजन का आधार है जिसे ग्रन्थ में तन्त्र के नाम से प्रयोग किया है। अतः पञ्चतन्त्र में ५ तन्त्र है जो ७५ कथाओं तथा ११०३ श्लोकों में निबद्ध है।

तन्त्र का नाम

उपकथा

श्लोक संख्या

कथामुख

 

10

मित्रभेद

22

461

मित्रसंप्राप्ति

6

199

काकोलूकीय

16

255

लब्धप्रणाश

11

80

अपरीक्षितकारक

14

98

 

2.   हितोपदेश- पञ्चतन्त्र का सबसे सार्थक संस्करण हितोपदेश को माना जाता है। माना जाता है कि पञ्चतन्त्र की कहानियों में मिश्रण हो जाने के कारण बंगाल के राजा धवलचन्द्र के आदेश पर नारायण पण्डित ने पञ्चतन्त्र का संकलन किया जो हितोपदेश के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस ग्रन्थ की रचना लगभग १० वीं सदी की मानी जाती है। नारायण पण्डित ने कथा लिखने से पूर्व यह घोषणा की है कि इसमे पञ्चतन्त्र तथा अन्य ग्रन्थों की सामग्री का प्रयोग किया है।  उन्होंने इसे चार परिच्छेदों में विभाजित किया है। इस ग्रन्थ में ४३ कथाओं का संग्रह तथा ७२६ श्लोक हैं।

परिच्छेद का नाम

उपकथा

श्लोक

प्रस्ताविका

1

47

मित्रलाभ

8

212

सुहृद्भेद

9

184

विग्रह

9

149

संधि

12

134

 

3.    बृहत्कथा- लोक साहित्य की सबसे प्राचीन तथा प्रसिद्ध पुस्तक बृहत्कथा है। इसकी व्यापकता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि परवर्ती आचार्यों ने इसकी कथाओं से हजारों प्रकार के साहित्य लिख डाले हैं। तथा काव्यशास्त्रवेत्ता ने भी अपने ग्रन्थों में इसको वर्णित किया है। बृहत्कथा पैशाची भाषा का ग्रन्थ है जिसे सातवाहन वंश के कवि गुणाढ्य ने लिखा है। इसकी रचना का समय लगभग ईसा की प्रथम सदी स्वीकार किया जाता है। माना जाता है कि बृहत्कथा के सम्पूर्ण मूल भाग को केवल गुणाढ्य ने ही पढा था। इसके पीछे एक कहानी है। जो इस प्रकार है कि गुणाढ्य ने पैशाची भाषा में ७ लाख श्लोकों की बृहत्कथा को सातवाहन राजा के पास भेजा था परन्तु उसने उसे स्वीकार नहीं किया जिसके कारण गुणाढ्य को अत्यन्त दुःख हुआ। उसने अपने पाठ को पढकर कुण्ड में जला दिया। इस प्रकार उसके जलाए पाठ से अवशेष रूप में केवल १ लाख श्लोकों का संग्रह ही शेष बचा था जिसमें नरवाहनदत्त का चरित्र है। दुर्भाग्य से वह मूल पाठ भी आज हमारे सामने प्रस्तुत नहीं है।   

बृहत्कथा आज उपलब्ध न होकर भी हमारे समाज में जीवित है जिसका श्रेय बुधस्वामी, क्षेमेन्द्र तथा सोमदेव को जाता है। इन तीनों के ग्रन्थ बृहत्कथा पर आधारित है।

क. बुधस्वामी- बुधस्वामी ने ९ वीं सदी में बृहत्कथाश्लोकसंग्रह नामक ग्रन्थ लिखा। बुधस्वामी नेपाल के मूलनिवासी थे। बृहत्कथा का संस्कृतरूप ही बृहत्कथाश्लोकसंग्रह है। उपलब्ध ग्रन्थ में ४५३९ श्लोक है जो २८ सर्गों में निबद्ध है। इसकी कथावस्तु को देखकर विद्वानों ने इसके अपूर्ण होने का अंदाजा लगाया है।

ख.                        क्षेमेन्द्र- ११ वीं सदी में क्षेमेन्द्र ने बृहत्कथा पर आधारित बृहत्कथामञ्जरी नामक ग्रन्थ की रचना की है। क्षेमेन्द्र कश्मीर के राजा अनन्त के आश्रित कवि थे। बृहत्कथामञ्जरी में १९ अध्याय तथा ७५०० श्लोक है।

ग.   सोमदेव- सोमदेव भी कश्मीर नरेश अनन्त के आश्रित कवि थे। इन्होंने बृहत्कथा पर आधारित कथासरित्सागर नामक कथासंग्रह ग्रन्थ लिखा। यह ग्रन्थ १८ लंभकों तथा १२४ तरंगों में विभाजित है। इसमें २१३८८ श्लोकों का संग्रह है।

 

4.   वेतालपंचविंशतिका- जैसा कि नाम से ज्ञात होता है कि इसमें २५ कथाओं का संग्रह है। इस ग्रन्थ के ४ संस्करण प्राप्त होते हैं-

a.    शिवदास कृत गद्य-पद्य पाठ।

b.   जम्भलदत्त कृत गद्य पाठ।

c.    अज्ञात कवि का गद्य रूपान्तर

d.   वल्लभदास  का संक्षिप्त पाठ।

5.   सिंहासन-द्वात्रिंशिका- यह ३२ कथाओं का संग्रह है। इसमें भोज को प्राप्त विक्रमादित्य सिंहासन की प्रत्येक पुत्तलिकाओं द्वार कही गई कथा है ये पुत्तलिका भी संख्या में ३२ ही है। इसका समय ११ वीं सदी है।

6.   शुकसप्तति- यह जैनाचार्य हेमचन्द्र की रचना है। इसका समय ११ वीं सदी है।

7.   वेतालपंचविंशतिका- इस ग्रन्थ के लेखक शिवदास है। यह १२०० ई. की रचना है।

8.   पुरुषपरीक्षा- विद्यापति (१४वीं सदी)

9.   कथाकौतुक- श्रीवीर कवि (१६वीं सदी)

10.         भोजप्रबन्ध- बल्लालसेन (१६ वीं सदी)

11.         अवदानसाहित्य (तृतीय शताब्दी ई. पू.) बौद्धकथा, लेखक-अज्ञात

12.         दिव्यावदान(तृतीय शताब्दी ई. पू.) बौद्धकथा, लेखक-अज्ञात

13.         जातककथा- यह ग्रन्थ आर्यशूर ने लिखा है। इसमें ५०० जातक कथाओं का संग्रह है। इसकी रचना लगभग ४०० ई. में हुई है।

14.         कल्पनामण्डितक या सूत्रालंकार- कुमारलात

15.         उपमितिभवप्रपञ्चकथा- यह सिद्धर्षि द्वारा लिखित ग्रन्थ है। यह १०वीं शताब्दी का ग्रन्थ है। इसमें जैनदर्शन से सम्बन्धित कथाओं का संग्रह है।

16.         परिशिष्टपर्व- हेमचंद्र (११वीं शताब्दी) जैनकथा

17.         प्रबन्धचिन्तामणि- मेरुतुंगाचार्य

18.         प्रबन्धकोश- राजशेखर

 

इस प्रकार भारतीय परम्परा में कथा साहित्य की प्रचुर मात्रा है। इसमें हम अनेक ग्रन्थों से अवश्य परिचित है परन्तु अधिकतर को कभी हमने सुना-देखा नहीं है। नवीन साहित्य की रचना के लिए प्राचीन साहित्य का अध्ययन आवश्यक हो जाता है।

        यदि आप कथा साहित्य के सम्बन्ध में कोई रोचक तथ्य से परिचित है जिसकी पहुँच अन्य लोगों तक कम मात्रा में है तो कमेंट में लिखकर साझा करें।

धन्यवाद !

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