दोस्तों जैसा कि हम जानते हैं कि भारत एक विविधताओं का देश है। यहाँ भिन्न-भिन्न परम्पराओं को मानने वाले लोग है जिसके कारण हर व्यक्ति के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि वह अपनी परम्परा के साथ अन्य सभी परम्पराओं की भी समझ रखें जिससे वह अपने विचार को आसानी से प्रेषित कर सकें साथ ही वह अन्य किसी के विचार को भी ग्रहण कर सकें। इस विविधता की परम्परा में लिपि तथा भाषा का महत्त्वपूर्ण स्थान है। जैसा कि कहा जाता है कि “कोस-कोस पर बदले पानी, चार कोस पर वाणी”। यही लिपि की परम्परा है। भारत में अनेक लिपियों का उद्भव हुआ है जिनमें अनेक ग्रन्थों की रचना की जाती रही है। जैसे ब्राह्मी, खरोष्ठी, शारदा, नागरी, नेवारी, तिगलारी, ग्रन्थ, टाकरी, मोडी आदि जो भिन्न-भिन्न प्रदेश में उत्पन्न हुई।
यह तो हुई लिपियों की भिन्नता की बात, इसके अतिरिक्त यदि हम देवनागरी को ही शब्दों के बीच अवकाश न देकर लिख दे, तो भी कोई इस लेख के आशय को नहीं समझ सकता। जैसा कि हमें ज्ञात है कि प्राचीन लेखन में शब्दों के बीच कोई अवकाश नहीं दिया जाता था। आप इस चित्र से समझ सकते हैं-
इस चित्र में अनेक शब्द है जो वाक्यों में निबद्ध है परन्तु यहाँ देखने से ज्ञात होता है कि यह एक लम्बा शब्द है। शब्दों के बीच अवकाश न देने का कारण यह था कि जब आप वाक्यों का उच्चारण करते है तब शब्दों के बीच अवकाश नहीं देते। जैसे एक वाक्य है- राम जाता है। अब इसे हम जब बोलते है तो बिना किसी अवकाश से ही “रामजाताहै” इस प्रकार बोलते है। क्योंकि यह हमारे व्यवहार का विषय है इसलिए हम शब्दों को अलग-२ करके वाक्य का तात्पर्य समझ सकते है। परन्तु यही बात किसी अनभिज्ञ विषय की हो तो वाक्य का तात्पर्य समझना कठीन कार्य हो सकता है।
इसे हम कहानी से समझ सकते है-
कोई राहगीर अपने सफर से थका होने के कारण शहर के नजदीक की दुकान पर कुछ खाने के लिए रूका हुआ था। वह खाना खा ही रहा था कि अचानक एक काग आता है और दुकान में रखे दही की थाल में मुह मार देता है। यह देख दुकान के सेठ को बहुत गुस्सा आता है। सेठ ने क्रोधित होकर पास रखें लोहे के बाट को काग पर दे मारा। बदकिश्मती से वह बाट काग को लग गया जिससे उसकी वही मृत्यु हो गई। यह सब देख राहगीर को अत्यन्त दुःख हुआ। उसने अपने दुःख को कम करने के लिए पास की दीवार पर एक वाक्य लिखा “कागदहीपरजानगवायो”। यह लिखकर वह पुनः अपनी यात्रा पर निकल गया।
कुछ देर बाद उसी दुकान पर एक अन्य व्यक्ति आया जो पेशे से लेखक था। वह अपनी आमदानी से दुःखी था क्योंकि लेखक की आमदानी हमेशा से उसके कार्य की कीमत नहीं चुका पाती है। उस लेखक ने जब वाक्य को देखा तो उसने पढा- “कागद ही पर जान गवायो”। यह पढकर वह व्यक्ति नकारात्मक भाव छोडकर पुनः अपने लेखन के प्रति सकारात्मक हो गया।
उसके जाने के बाद दूसरा एक व्यक्ति उस दुकान पर आकर उस वाक्य को देखता है। यह व्यक्ति एक प्रेमी था जिसको उसकी प्रेमिका ने धोखा दिया था जिसके कारण वह मरने को तैयार हो गया था। जब यह व्यक्ति वाक्य को देखता है तो उसे इस प्रकार पढता है- “का गदही पर जान गवायो”। यह पढकर उसने अपने आप को सम्भाला और अपने को सकारात्मक पाया।
इसके उपरान्त तीसरा व्यक्ति जो तनाव मुक्त था। वह आता है और पास में पडे मृत काग को देखता है जिसके मुंह पर दही लगा हुआ था। जब वह दीवार की पंक्ति को पढता है तो वह समझ जाता है कि यह वाक्य इसी काग के लिए लिखा गया है।
अतः दोस्तों एक लिखी हुई पंक्ति का भिन्न-भिन्न लोगों ने भिन्न-भिन्न तात्पर्य समझा। यह सत्य है कि विद्वानों ने पुरानें लेखों का अध्ययन करके उनका अनुवाद किया हुआ। परन्तु आज भी यह कहना मुश्किल है कि वे लेखक के तात्पर्य को सही रूप में समझ पाये है या नहीं। दोस्तों हो सकता है उस लेखक की स्थिति आप के समान हो, अतः आपसे ज्यादा उसे और कोई नहीं समझ सकता।
मेरा अनुरोध आप सभी से है कि ऐसे ग्रन्थों को एक बार अवश्य पलटे, शायद आप किसी हजारों वर्षों की उलझन को सुलझा सकें।
धन्यवाद !
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