नन्दवंश के नाश का कारण कौन ?
दोस्तों, जैसा कि हम इतिहास में सुनते आये हैं कि नन्दवंश अर्थात् महानन्द तथा उसके आठ पुत्रों का नाश चाणक्य ने किया है। कारण था चाणक्य का सभा में अपमान। लेकिन इतिहास कुछ और भी कहता है। चलिए आज नन्दवंश के नाश का द्वितीय पक्ष देखते है।
हाँ, यह सत्य है कि नंदवंश का नाश अपमान के कारण ही हुआ था परन्तु यह अपमान चाणक्य का न होकर शकटार का था। शकटार का परिचय यह है कि वह महानन्द का प्रमुख मंत्री था। असल में महानंद एक नीतिवान् सम्राट् था जिसने दो प्रमुख मन्त्रियों को अपने शासन व्यवस्था में निबद्ध किया हुआ था। एक स्वयं शकटार तथा दूसरा राक्षस था। हालांकि राक्षस को इतिहास में बहुत योग्य एवं नीतिज्ञ मन्त्री माना जाता है परन्तु महानंद की सभा में शकटार का पद शीर्ष पर था। शकटार को राज्य में इतना सम्मान प्राप्त था कि कई बार वह महानंद पर ही भारी पड जाता था जिसके कारण अधिकतर महानंद तथा शकटार में विवाद होता रहता था। कुछ दिनों ऐसा चलने के बाद महानंद ने एक दिन शकटार तथा उसके आत्मजनों को क्रोध में बंदी बनाकर कैद करवा दिया। शकटार इस अपमान को सहन नहीं कर सका। वह कैद खाने से कम परन्तु अपने अपमान से अधिक घुट रहा था। कहा जाता है कि शकटार तथा उसके परिवार को दिन में दो सैर सत्तू खाने को दिया जाता था। शकटार प्रतिदिन सत्तू को हाथ में लेकर घोषणा करता था कि जो महानंद के नाश में मेरे साथ नहीं है वह सत्तू का भोग कर सकता है। इस प्रकार शकटार के परिवार के किसी भी सदस्य ने भोजन नहीं किया जिसके कारण एक-एक करके सभी की मृत्यु हो गई। अब शकटार के पास खोने का कुछ नहीं था अतः उसने अपने जीवन को चलाने के लिये कुछ भोजन का सेवन किया क्योंकि उसक उद्देश्य तो महानंद का नाश था।
उन्हीं दिनों महानंद एक दासी से क्रोधित हो जाता है जिसको वह एक महिने का समय देता है तथा उसके उपरान्त सही उत्तर न देने पर उसे मृत्यु की सजा देने को कहता है। हुआ यूँ था कि एक दिन महानन्द को अजानक हँसी आ जाती है और वह हंसने लगता है। उसे देखकर एक दासी भी हँसने लगती है। महानन्द को उसकी हँसी अपमान के समान प्रतीत हुई। महानंद ने दासी से हँसने का कारण पूँछा मगर दासी के पास कोई सटीक उत्तर न होने से महानंद और भी क्रोधित हुआ । दासी महानंद से डर गई तथा उसने एक महिने का समय मांगा। महानंद ने उसे समय तो दिया मगर इधर एक महिने के दिन कम होते जा रहे थे उधर दासी का डर और भी बड रहा था। यह वही दासी थी जो शकटार के लिए सत्तू ले जाया करती थी। एक दिन शकटार ने उसके दुःखी होने का कारण पूँछा। दासी ने सम्पूर्ण कहानी शकटार को सुना दी। शकटार ने वृतांत सुनकर महानंद के हंसने का कारण जान लिया। उसने कहा कि महानंद ने कुल्ला करते हुए जब जल के छोटे छींटो को देखा तब उसे वटवृक्ष के छोटे बीजों का ध्यान आया, वह सोचने लगा इतने छोटे वट के बीज सम्पूर्ण वृक्ष को बनाते है तभी कुल्ले के छींटे जमीन पर जाकर खत्म हो जाते है। बस इसी बात से महानंद अपनी भावना नहीं रोक पाया और वह हंसने लगा। शकटार के इस बात से स्पष्ट है कि वह पहले भी इस घटना को देख चुका था।
जैसा कि एक महिने के उपरान्त दासी ने महानंद को हँसने का कारण बता दिया। महानंद को बडा आश्चर्य हुआ। उसने दासी से उसके रहस्य के बारे में पूछा? दासी ने शकटार के साथ का वृतांत सुना दिया। महानंद यह अवश्य जानता था कि शकटार बुद्धिमान है अतः वह स्वयं उसकी प्रसंशा करने लगा, यह देख दासी ने शकटार को मुक्त करने की प्रार्थान की। क्योंकि अब तक महानंद का क्रोध शकटार से हट चुका था अतः उसने उसको न केवल मुक्त किया अपितु राक्षस के अधिन मन्त्री पद भी दिया। शायद यही महानंद की प्रथम गलती थी कि उसने अपमान से पीडित ब्राह्मण को छोड दिया था। शकटार दिन-रात बस इसी चिन्ता में रहता था कि वह महानंद का नाश कैसे करें।
फिर एक दिन उसने एक ब्राह्मण को कुशाओं में मट्ठा डालते देखा। यह दृश्य शकटार को कुछ अजीब सा लगा। उसने उस ब्राह्मण से यह जानने की इच्छा व्यक्त की, कि वह ऐसा क्यों कर रहा है? वह ब्राह्मण और कोई नहीं चाणक्य था। चाणक्य कुशाओं के सर्वनाश को कारण बताते हुए पुनः अपने काम में लग जाता है। शकटार दोबरा उससे पूछता है कि आप इन कुशाओं का सर्वनाश क्यों करना चाहते हो? चाणक्य कहता है कि इन कुशाओं ने बिना उद्देश्य मुझे दुःख पहुँचाया है। शकटार को यह बात दिल में लग गई। उसने भाप लिया कि यही वह व्यक्ति है जिसके द्वारा महानंद का नाश किया जा सकता है। शकटार उस ब्राह्मण को अपने राज्य लाता है तथा वहाँ एक पाठशाला में उसे आचार्य नियुक्त करता है। अब शकटार ऐसे किसी मौके में था कि जब महानंद के सामने चाणक्य को लाया जाये जिससे उसके स्वरूप को देखकर वह उसे अपमानित कर दें।
हुआ यूँ ही एक दिन ब्राह्मण भोज पर शकटार चाणक्य को भी आमंत्रित करता है। महानंद चाणक्य के शरीर तथा उसके डरावने चेहरे को देखकर क्रोधित हो जाता है। और चाणक्य को सभी ब्राह्मणों के सामने अपमानित कर देता है। चाणक्य भी अपने स्वभाव के अनुसार महानंद के सर्वनाश की प्रतिज्ञा धारण करता है। शकटार को उसका उद्देश्य पूरा होता नजर आ रहा था। इसके बाद शकटार ने चाणक्य को महानंद के घर के सभी भेद बता दिये जिसकी सहायता से चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को छोडकर सभी नंदो को मौत के घाट उतार दिया।
अतः इस ऐतिहासिक घटना से यही प्रतीत होता है कि महानंद के सर्वनाश का असली जिम्मेदार चाणक्य न होकर शकटार है।
धन्यवाद!
3 comments
Click here for commentsविश्लेषण बहुत अच्छा है
Replyअच्छा लेखन कार्य है।
Replygood interpretation
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