संस्कृतभाषा का लिप्यन्तरण

संस्कृत भाषा में अनेक विद्याओं का समावेश है। इस ज्ञान के प्रसार हेतु संस्कृत ग्रन्थों का लिप्यन्तरण कार्य होना आवश्यक था। संस्कृत ग्रन्थों को विदेशों तक पहुँचाने में लिप्यन्तरण का असाधारण योगदान है। संस्कृत से रोमन में लिप्यन्तरण हेतु अनेक संस्थाओं ने नियम बनाये है जिनमें लगभग समानता पाई जाती है। आधुनिक समय में संगणक पर भी संस्कृत से रोमन हेतु अनेक सॉफ्टवेयर निर्मित किये जा रहे है जो नियमों के साथ लिप्यन्तरण शीघ्रता से कर देते है। संस्कृत की लिपि देवनागरी है अतः लिप्यन्तरण का माध्यम देवनागरी लिपि से रोमन लिपि होता है यथा-
धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः ।
मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत संजय ॥

dharmakṣetre kurukṣetre samavetā yuyutsavaḥ |
māmakāḥ pāṇḍavāścaiva kimakurvata saṃjaya ||

दृष्टवा तु पाण्डवानीकं व्यूढं दुर्योधनस्तदा ।
आचार्यमुपसंगम्य राजा वचनमब्रवीत्‌ ॥

dṛṣṭavā tu pāṇḍavānīkaṃ vyūḍhaṃ duryodhanastadā |
ācāryamupasaṃgamya rājā vacanamabravīt ||


देवनागरी से रोमन लिपि हेतु विभिन्न योजना-

१. अन्तर्राष्ट्रीय संस्कृत लिप्यन्तरण वर्णमाला- अन्तर्राष्ट्रीय संस्कृत लिप्यन्तरण वर्णमाला (अंग्रेजी: IAST - International Alphabet of Sanskrit Transliteration) एक लोकप्रिय लिप्यन्तरण स्कीम है जो कि इण्डिक लिपियों के हानिरहित (लॉसलॅस) रोमनकरण हेतु प्रयोग की जाती है। इसमें गैर-आस्की वर्णों का भी प्रयोग किया जाता है। इसके अलावा छोटे-वर्ण (small letters) और बड़े-वर्ण दोनो का प्रयोग किया गया है। IAST संस्कृत तथा पाली के रोमनकरण हेतु सर्वाधिक लोकप्रिय लिप्यन्तरण स्कीम है। यह प्राय: मद्रित प्रकाशनों में प्रयोग की जाती है, खासकर किताबें जो कि भारतीय धर्मों से संबंधित प्राचीन संस्कृत तथा पाली विषयों पर हों। यूनिकोड फॉण्टों की सुलभता हो जाने से इसका प्रयोग इलैक्ट्रॉनिक टैक्स्ट के लिये भी बढ़ने लगा है। IAST 'इंटरनेशनल काँग्रेस ऑफ ओरिएंटलिस्ट्स' द्वारा १८८४ में जेनेवा में तय किये गये एक मानक पर आधारित है। यह देवनागरी तथा अन्य ब्राह्मी परिवार की इण्डिक लिपियों जैसे शारदा लिपि हेतु एक हानि रहित (लॉसलॅस) लिप्यन्तरण उपलब्ध कराती है। साथ ही यह न केवल संस्कृत के फोनेम ही नहीं, बल्कि फोनेटिक ट्राँसक्रिप्शन भी प्रकट करती है। (उदाहरणार्थ, विसर्ग ḥ शब्दों के अन्त में आने वाले 'र्' तथा 'स्' का उपस्वन (allophone) है।

२. कोलकाता राष्ट्रीय पुस्तकालय रोमनीकरण -कोलकाता राष्ट्रीय पुस्तकालय रोमनीकरण योजना, ब्राह्मी परिवार की इण्डिक लिपियों के रोमनकरण हेतु IAST का ही विस्तार है। राष्ट्रीय पुस्तकालय, कोलकाता-रोमनीकरण भारतीय भाषाओं के शब्दकोषों तथा व्याकरण में सर्वाधिक प्रयुक्त होने वाली लिप्यन्तरण स्कीम (देखें "देवनागरी लिप्यन्तरण") है। इस लिप्यन्तरण स्कीम को लाइब्रेरी ऑफ काँग्रेस के नाम से भी जाना जाता है तथा यह लगभग ISO 15919 के सम्भावित वैरियेंटों जैसी ही है। नीचे दी गयी सारणियाँ अधिकतर देवनागरी का प्रयोग करती हैं पर कुछ अक्षर कन्नड़, तमिल, मलयालम तथा बंगाली भाषाओं से भी हैं जिनका प्रयोग गैर-देवनागरी वर्णों के लिप्यन्तरण में किया जाता है। यह स्कीम IAST स्कीम का ही विस्तार है जो कि संस्कृत के लिप्यन्तरण के लिये प्रयोग की जाती है।

३. हन्टेरियन लिप्यन्तरण- देवनागरी से रोमन लिपि में लिप्यन्तरण की अनेक विधियाँ हैं। हन्टेरियन लिप्यन्तरण विधि भारत की राष्ट्रीय रोमन लिप्यन्तरण विधि मानी जाती है।हन्टेरियन लिप्यन्तरण विधि का विकास उन्नीसवी शताब्दी में भारत के भूतपूर्व सर्वेयर-जनरल, विलियम विल्सन हंटर, ने किया था। यह विधि भारत की राष्ट्रिय रोमन लिप्यन्तरण विधि मानी जाती है और इसे भारत सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त है। भारत के अधिकतर व्यक्तियों, स्थानों, घटनायों, ग्रंथों एवं पुस्तकों के प्रचलित रोमन-लिपि नाम इसी हन्टेरियन विधि पर आधारित हैं।

४. आईएसओ १५९१९- आईएसओ १५९१९ (ISO 15 919) भारतीय लिपियों के लैटिन लिपि में लिप्यन्तरण का एक आईएसओ मानक है। यह मानक लिप्यन्तरण बहुत सीमा तक आईएएसटी पर आधारित है (किन्तु कुछ अन्तर भी हैं) किन्तु यह उन ध्वनियों को भी समाहित किये हुए है जो संस्कृत में नहीं हैं। यद्यपि म्यांमार लिपि, तिब्बती लिपि, खमेर लिपि, थाई लिपि और लाओ लिपि भी अन्य भारतीय लिपियों की भांति ब्राह्मी लिपि से ही उत्पन्न हैं तथापि यह मानक इन लिपियों पर लागू नहीं होता।

५. हार्वर्ड-क्योटो- हार्वर्ड-क्योटो पद्धति, संस्कृत, तथा देवनागरी लिपि में लिखी जाने वाली अन्य भाषाओं के ऑस्की में लिप्यन्तरित करने हेतु एक प्रक्रिया है। यह मुख्य रूप से अनौपचारिक रूप से ईमेल में तथा इलेक्ट्रॉनिक टैक्स्टों में प्रयोग किया जाता है

६. आइट्राँस- आइट्राँस, देवनागरी सहित भारत की अनेक लिपियों में लिखे पाठ को रोमन लिपि में लिप्यन्तरण की एक पद्धति है। आजकल अनेक कम्प्यूटर सॉफ्टवेयरों के उपलब्ध होने से आइट्रान्स में लिप्यन्तरण का कार्य अत्यन्त सरल, तेज और मशीनी हो गया है। इसका विकास अविनाश चोपड़े ने किया। आइट्राँस का नवीनतम् संस्करण 5.30 है जो 2001 के जुलाई में आया था। इसी संस्करण के बाद आइट्राँस को स्थिर कर दिया गया है।

लिप्यन्तरण हेतु संगणक सॉफ्टवेयर-

Sanskript - देवनागरी एवं अन्य भारतीय भाषाओं का परस्पर लिप्यन्तरण का आनलाइन प्रोग्राम। यहाँ भारतीय भाषाओं और आईट्रन्स/हार्वर्ड-क्योटो आदि को भी परस्पर बदलने की सुविधा है।
गिरगिट - यूनिकोडित उड़िया, कन्नड़, गुजराती, गुरमुखी, तमिल, तेलुगु, बांग्ला या मलयालम का परस्पर लिपि परिवर्तक प्रोग्राम।
अक्षरमुख - ब्राह्मी लिपि से व्युत्पन्न सभी लिपियों सहित iTrans में परस्पर लिपि बदलने का अत्यन्त उपयोगी आनलाइन प्रोग्राम।
अक्षर-ब्रिज - देवनागरी आदि का परिवर्तक।
ICU Transform Demo यहाँ लगभग हरेक लिपि को किसी दूसरी लिपि में बदला जा सकता है।
Phonetic Translation Library is Opensource now !!
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