ब्राह्मणों ग्रन्थों पर किये गये शोधकार्य

ब्राह्मणग्रन्थों का मुख्य विषय यज्ञ का सर्वांगपूर्ण निरूपण है। इस याग-मीमांसा के दो प्रमुख भाग हैं- विधि तथा अर्थवाद। 'विधि' से अभिप्राय है यज्ञानुष्ठान कब, कहाँ और किन अधिकारियों के द्वारा होना चाहिए। याग-विधियाँ अप्रवृत्त कर्मादि में प्रवृत्त कराने वाली तथा अज्ञातार्थ का ज्ञापन कराने वाली होती हैं। इन्हीं के माध्यम से ब्राह्मणग्रन्थ कर्मानुष्ठानों में प्रेरित करते हैं, जैसा कि आपस्तम्ब का यज्ञपरिभाषा में कथन है-'कर्मचोदना ब्राह्मणानि'। विधि का स्तुति और निन्दारूप में पोषण तथा निर्वाह करने वाले ब्राह्मणगत अन्य विषय अर्थवाद कहलाते हैं अर्थवादपरक वाक्यों में यज्ञनिषिद्ध वस्तुओं की निन्दा तथा यज्ञोपयोगी वस्तुओं की प्रशंसा रहती है। इस प्रकार के वाक्यों की विधि-वाक्यों के साथ 'एकवाक्यता' का उपपादन मीमांसकों ने किया है-विधिना तु एकवाक्यत्वात् स्तुत्यर्थेन विधीनां स्यु: उनके अनुसार विधि और अर्थवाद वचनों के मध्य परस्पर शेषशेषिभाव अथवा अङ्गाङिगभाव है। अत: शबरस्वामी के मतानुसार वस्तुत: विधियाँ ही अर्थवादादि के रूप में ब्राह्मण ग्रन्थों में दस प्रकार से व्यवह्रत हुई हैं- 
हेतुर्निर्वचनं निन्दा प्रशंसा संशयो विधि:।
परक्रिया पुराकल्पो व्यवधारणकल्पना॥
उपमानं दशैवैते विधयो ब्राह्मणस्य तु।
एतद्वै सर्ववेदेषु नियतं विधिलक्षणम्॥

शोधकार्यों का सर्वेक्षण-

1. १८९३, स्टैनकार्नो,  सामविधानब्राह्मण का जर्मनानुवाद, जर्मन
2. १९१६, वी एस भट्टाचार्य, शतपथब्राह्मण, बङ्गसाहित्य परिषद् कलकत्ता
3. १९२१, एच ऑर्टेल, जैमिनीय उपनिषद् ब्राह्मण का जर्मन अनुवाद, जर्मन
4. १९६४,  डॉ सूर्यकान्त,  अथर्ववेद एवं गोपथ ब्राह्मण का हिन्दी अनुवाद, ब्लूमफील्डकृत, चौखाम्बा वाराणसी
5. १९७१, गणेशचन्द्रपाण्डेय, षड्विंशब्राह्मणम् का समीकात्मक हिन्दी अनुवाद, राष्ट्रिय संस्कृत महाविद्यालय, कलकत्ता
6. १९७२, राजेन्द्रलाल मिश्रा, गोपथ ब्राह्मण ऑफ अथर्ववेद, इण्डोलॉजिकल शाखा लखनऊ तथा वाराणसी
7. १९७७,  क्षैमकरणदास,  गोपथ ब्राह्मण भाष्यम्, डॉ इन्द्रदयाल सेठ इलाहाबाद
8. १९८५,  स्वर्णकान्ता, शतपथब्राह्मणे संग्रहकाण्डस्य समीक्षात्मकमध्ययनम् राष्ट्रिय संस्कृत संस्थान, पुरी
9. १९९१, शेषनाथ द्विवेदी, शतपथ ब्राह्मणान्तर्गतानामाख्यानानां विकासदृष्ट्वा समीक्षात्मकमध्ययनम्, राष्ट्रिय संस्कृत संस्थान इलाहाबाद
10. १९८०, विजयपाल विद्यावरी,  सावित्री देवीबागडिया ट्रस्ट कलकत्ता
11. १९९२, शीला त्रिपाठी,  सामविधानब्राह्मणस्य समालोचनात्मकमध्ययनम्,  राष्ट्रिय संस्कृत संस्थान इलाहाबाद
12. १९९२,  दुर्गाप्रसाद,  ऋग्वेदीयब्राह्मणद्वयान्तर्गतानाम् आख्यानानां विकासदृष्ट्या समालोचनात्मकमध्ययनम्, 
13. १९९५, सन्ध्या सिन्हा,  शतपथब्राह्मणस्य निर्वचनानां समीक्षात्मकमध्ययनम्, राष्ट्रिय संस्कृत संस्थान इलाहाबाद
14. १९९७ , श्री मधुकरप्रसाद पाण्डेय,  शतपथ ब्राह्मणे कथोय कथन वैशिष्ट्यानुशीलनम्, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, बनारस
15. १९९७, रामराज उपाध्याय, सामविधानब्राह्मणस्यानुशीलनम्
16. १९९९,  डी गस्तरा, गोपथब्राह्मण, यूरोप
17. २००१ , शशिशेखरमिश्र, शतपथब्राह्मणे दार्शनिकतत्त्वानुशीलनम्
18. २००१, जे. क्रिष्णन, मैत्रेयीब्राह्मणभाष्य व मैत्रेयीब्राह्मण भाष्यतात्पर्यदीपिका (महादेवेन्द्र सरस्वती), मद्रास विश्वविद्यालय
19. २००५, सन्ध्या रानी सिंह,  अथर्ववेदीयस्य ब्राह्मणस्य निर्वचनानां समीक्षात्मकमध्ययनम्, राष्ट्रिय संस्कृत संस्थान इलाहाबाद
20. २००६, राजेश कुमार दाधीच, शतपथब्राह्मणमनुसृत्य मनः प्राणवाक् तत्त्वानां विवेचनम्, राष्ट्रिय संस्कृत संस्थान जयपुर
21. २००६, नित्यावती देवी, एतरेय ब्राह्मणस्यादित चतुर्थ पञ्चिका पर्यन्त भागस्य समीक्षात्मक अनुशीलनम्
22. २००६, उर्मिला शर्मा, गोपथ ब्राह्मण में ब्रह्मचारी विवेचन, हिमाचल विश्वविद्यालय
23. २००८, रूद्रप्रसादमिश्र, माध्यन्दिन शतपथ ब्राह्मण गताख्यानानां समीक्षणम्,
24. २०१०, सुनील कुमार, शतपथ ब्राह्मणका बारहवां काण्ड - एक विवेचन, हिमाचल विश्वविद्यालय
25. २०१५, चन्दाकुमारी, गोपथ ब्राह्मण का धर्मशास्त्रीय विश्लेषण, जवाहरलालनेहरु विश्विविद्यालय
26. सुमन, यजुर्वेदीय ब्राह्मण एवं आरण्यक ग्रन्थों में यज्ञों की प्रतीकात्मक व्याख्या: एक अध्ययन, दिल्ली विश्वविद्यालय
27. अपर्णाधीर, शतपथ एवं तैत्तिरीय ब्राह्मण में प्रतिपादित ज्योतिष के तत्त्व, दिल्ली विश्वविद्यालय
28. सुमन आर्या, ब्राह्मण ग्रन्थों में प्रतिबिम्बित अर्थव्यवस्था : एक समीक्षात्मक अध्ययन, दिल्ली विश्वविद्यालय

उपरोक्त सर्वेक्षण से यह ज्ञात होता  है कि ब्राह्मण ग्रन्थों पर विभिन्न विश्वविद्यालयों में अनेक कार्य हुये है। परन्तु यह भी नहीं कह सकते कि ब्राह्मण ग्रन्थों पर पर्याप्त कार्य हो चुका है। ब्राह्मण ग्रन्थों का काव्य, दर्शन, भाषाविज्ञान, समाज, संस्कृति, विधि इत्यादि के परिप्रेक्ष्य में शोध किया जाना अपेक्षित है। प्रत्येक वेद की विभिन्न शाखाओं के अपने-अपने ब्राह्मण है अतः यहाँ तुलनात्मक शोध भी किया सकता है।

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