इतिहास के सराहनीय कार्य
दोस्तों इतिहास मात्र मनोरंजन या परीक्षा का विषय नहीं है। यह एक ऐसा विषय है जो वर्तमान के साथ भविष्य के लिए भी जरुरी है। इतिहास लेखन में अनेक उपकरणों की सहायता होती है जिसमें प्रमुख उपकरण साहित्य होता है। हमारा यहाँ साहित्य से तात्पर्य लेखन के सभी प्रकार चाहे वह सिक्कें, अभिलेख या पाण्डुलिपि का कोई भी प्रकार हो। अब हम अपने मुख्य विषय पर आते है। जरा सोचिए यदि आपके पास लिखितरूप में उपकरण प्राप्त है और यदि आप उनमें लिखी सामग्री का अध्ययन करने में सक्षम न हो तो क्या वह सामग्री आपके लिये उपयोगी है? वह सामग्री हमारे लिये “काला अक्षर भैंस बराबर” है। प्रत्येक समृद्ध समुदाय का कर्त्तव्य है कि वह अपने इतिहास की समझ रखें क्योंकि जिन्होंने इतिहास को भूला दिया उन्होंने अपने अस्तित्व को भी भूला दिया है।
अब हम अपने विषय पर आते है। इतिहास के उपकरण सिक्कें, अभिलेख, पाण्डुलिपि आदि को केवल हम अपनी धरोहर मानकर संरक्षण ही न करें बल्कि उनमें निहित ज्ञान को पढने या उजागर करने का प्रयास करें। आज अनेक परिवारों में पूर्वजों द्वारा संरक्षित पुस्तकों की प्राप्ति होती है मगर अफसोस हम उन्हें समझने में समर्थ नहीं होते है। इनमें से कुछ समझदार तो उन ग्रन्थों को किसी ऐसी संस्था को दान दे देते है जो अन्वेषण कार्य करने में सलंग्न होती है। और कुछ स्वयं पैसे देकर उनका अनुवाद या लिप्यन्तर करवाते है। ये दोनों कार्य ठीक है परन्तु इनसे विपरित जो अपने पूर्वजों के कार्यों को बेकार सिद्ध करके कूडे-कचरे में फैंक देते है। काश यदि उन्हें उस लिपि या भाषा का ज्ञान होता तो अवश्य उसके पन्ने पलट कर देखते परन्तु दुर्भाग्य.....। मैथलीशरण गुप्त भी अपनी पुस्तक भारत-भारती में चिन्ता करते हुए लिखते है-
यद्यपि अतुल, अगणित हमारे ग्रन्थ रत्न नये नये
बहु बार अत्याचारियों से नष्ट भ्रष्ट किये गये।
पर हाय! आज रही सही भी पोथियाँ यों कह रहीं-
क्या तुम वही हो! आज तो पहचान तक पडते नहीं॥
अब लुप्त-सी जो हो गई रक्षित न रहने से यहाँ,
सोचो तनिक, कौशल्य की इतनी कलाएँ थीं कहाँ,
लिपि बद्ध चौंसठ बाम उनके आज भी हैं दीखते,
दश चार विद्या-विज्ञ होकर हम जिन्हें थे सीखते॥
दोस्तों ऐसा नहीं है कि हम इन ग्रन्थों को पढने मे सक्षम नहीं है तो कोई भी नहीं है। इतिहास तथा वर्तमान में ऐसे अनेक विद्वान् है जिन्होंने इन सामग्रीयों पर निरन्तर कार्य करके उन्हें पढा है तथा उनमें निहित ज्ञान या सूचनाओं को प्रकाशित किया है। यहाँ कुछ ऐसी पुस्तकों की सूची है जिनमें लिपियों, अभिलेखों आदि के पठन की कहानी है। इनमें उन विद्वानों के सम्पूर्ण जीवन के अनुभव है जिन्होंने अपना जीवन केवल अन्वेषण में व्यतित कर दिया है।
1. ब्यूलर- Indische Palaegraphie, इस पुस्तक का हिन्दी अनुवाद मंगलनाथ सिंह ने “भारतीय पुरालिपि शास्त्र” नाम से प्रकाशित किया।
2. गौरीशंकर ओझा- प्राचीन लिपिमाला ।
3. सी. शिवराम मूर्ति- Indian palaegraphie and south Indian scripts.
4. डॉ चन्द्रिका सिंह उपासक- History of palaeography of Mouryan Scripts.
5. डॉ. अहमद सिंह उपासक- Indian Palaeography.
6. Richard Salomon- Indian Epigraphy.
7. डॉ. राजबली पाण्डेय- अशोक के अभिलेख ।
8. ईश्वरचन्द्र राही- लेखन कला का इतिहास ।
9. राजबली पाण्डेय- भारतीय पुरालिपि ।
10. गुणाकर मुळे- भारतीय लिपियों की कहानी ।
11. अनीता रामपाल- लिखाई की कहानी ।
12. वासुदेव उपाध्याय- प्राचीन भारतीय अभिलेखों का अध्ययन ।
13. श्री राम गोपाल- प्राचीन भारतीय अभिलेख संग्रह ।
14. डॉ. निहारिका- प्राचीन भारतीय पुरातत्त्व, अभिलेख एवं मुद्राएँ ।
15. डॉ. दिनेश चन्द्रा- प्राचीन भारतीय अभिलेख ।
16. कृष्णदत्त वाजपेयी- ऐतिहासिक भारतीय अभिलेख ।
17. डॉ. श्रीपति अवस्थी- भारत के प्रसिद्ध अभिलेख ।
18. डॉ. भगवतीलाल राजपुरोहित- भारतीय अभिलेख और इतिहास ।
19. डॉ. श्रीकृष्ण जुगनू- भारतीय ऐतिहासिक प्रशस्ति परम्परा एवं अभिलेख ।
20. डॉ. भगवतीलाल राजपुरोहित- प्राचीन भारतीय अभिलेख ।
21. डॉ. सत्येन्द्र- पाण्डुलिपि विज्ञान ।
22. डॉ. अभिराजराजेन्द्र मिश्र- शोधप्रविधि एवं पाण्डुलिपि विज्ञान ।
23. डॉ. विक्रम सिंह भाटी- पाण्डुलिपि पठन एवं भाषा विज्ञान ।
दोस्तों अपने जीवन की कुछ समय इन पुस्तकों के लिए अवश्य निकालें। यदि आप इनमें से किसी एक पुस्तक का भी अध्ययन करेंगे तो आप उन लोगों के कार्य से अवश्य प्रभावित होंगे जिन्होंने यह जानकारी आप तक पहुँचाने का प्रयास किया। आप इन किताबों से लिपि का ज्ञान भी प्राप्त कर सकते है जिससे आप भी सिक्कें, अभिलेख या पाण्डुलिपि को आसानी से पढ सकते है। यह मात्र आपका ज्ञान ही नहीं बढायेगा बल्कि भविष्य में आपको रोजगार भी दे सकता है। आज अनेक संस्थाएँ पाण्डुलिपियों पर कार्य कर रही है परन्तु उन्हें लिपिज्ञ प्राप्त नहीं है। उदाहरण के लिए उदयपुर में धरोहर नामक एक संस्था है जहाँ पाण्डुलिपि पर कार्य हो रहा है। इच्छुक अभ्यार्थी वहाँ सम्पर्क कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त अनेक पाण्डुलिपि संस्थायें है जहाँ वर्षों से पाण्डुलिपि आदि पर कार्य हो रहा है जैसे इन्दिरा गाँधी राष्ट्रिय कला केन्द्र, नई दिल्ली। और हाँ आपको जानकर हर्ष होगा कि IGNCA यानि इन्दिरा गाँधी राष्ट्रिय कला केन्द्र, नई दिल्ली में पाण्डुलिपि तथा लिपियों पर एक वर्षीय डिप्लोमा कोर्स होता है जहाँ लगभग १८ लिपियों का ज्ञान करवाया जाता है। साथ ही आपको इतिहास से जुडे कई महत्त्वपूर्ण उपकरणों से जुडने का मौका मिलता है। यदि आप दिल्ली में रह रहे तो यह कोर्स आपको अवश्य करना चाहिए।
धन्यवाद!
6 comments
Click here for commentsGreat knowledge
ReplyUttam...
Replyअत्यंत महत्वपूर्ण कार्य कर आपने सम्पूर्ण साहित्यिक कृतियों में ओजस्विता भरने में सहायक होगा ।
ReplyThanks for good information of manuscript
ReplyWaaaaaa
ReplyVery informative. Nice👍
Replyif any question, you can comments.... ConversionConversion EmoticonEmoticon