यह पोस्ट संस्कृत यू.जी.सी/ नेट के पाठ्यक्रम से सम्बन्धित है। इसमें पाठ्यक्रम के अनुसार अभिलेख विषय के मुख्य बिन्दुओं को चिह्नित करने का प्रयास किया है।
कनिष्क के शासन वर्ष ३ का सारनाथ बौद्ध प्रतिमा लेख
१. काल- प्रथम शताब्दी ई. उत्तरार्द्ध, सं.- ३-८१
२. भाषा- प्राकृत (संस्कृत से प्रभावित)
३. लिपि- ब्राह्मी
४. विषय- भिक्षुबल द्वारा विभिन्न लोगों के साथ छत्र और यष्टि की स्थापना, हित और सुख के लिये
५. यह अभिलेख तीन खण्डों में है।
६. यह अभिलेख कनिष्क का सर्वप्रथम अभिलेख है।
७. इनमें दाता भिक्षुबल है।
८. रवरपल्लान की उपस्थिति में भिक्षुबल तथा भिक्षुणी बुद्धमित्रा ने वाराणसी में बोधिसत्त्व की एक प्रतिमा तथा छत्रयष्टि स्थापित की।
कनिष्क के शासन वर्ष १८ का मनकियाला अभिलेख
१. स्थान- मणकियाला, रावलपिण्डी, पाकिस्तान
२. लिपि- खरोष्ठी
३. भाषा- प्राकृत
४. यह अस्थिपेटिका के ढक्कन के ऊपरीभाग पर उत्कीर्ण है।
नहपान के काल का नासिक गुहा अभिलेख- शक क्षत्रप नहपान
१. स्थान- नासिक
२. भाषा- प्राकृत, संस्कृत
३. लिपि- ब्राह्मी
४. विषय- नहपान की पुत्री दक्षमित्रा द्वारा धर्मार्थ गुहावास का दान, उषवदत्त(ऋषभदत्त) द्वारा किरश्मि पर्वत पर दान
५. कार्षापण सुवर्ण के सिक्कें थे जो दान में दिये गये थे।
६. उषवदत्त नहपान का जामाता था।
७. यह अभिलेख शातकर्णी के समय का है।
रुद्रदामन का जूनागढ़ गिरनार शिलालेख
१. स्थान- जूनागढ गुजरात
२. भाषा- संस्कृत
३. लिपि- ब्राह्मी
४. समय- रुद्रदामन के ७२वें वर्ष में
५. विषय- रुद्रदामन के प्रान्तीय शासक सुविशाख द्वारा सुदर्शन बाँध का पुननिर्माण, बाँध का पूर्व इतिहास
६. रुद्रदामन की महाक्षत्रप उपाधि
७. रुद्रदामन महाक्षत्रप जयदामन का पुत्र था।
८. इस अभिलेख में सातवाहनवंशीय सातकर्णी का उल्लेख है।
९. इस अभिलेख में मौर्य सम्राट् चन्द्रगुप्त तथा उसके अधीन राष्ट्रिय पुष्यगुप्त का उल्लेख करता है।
१०. इस अभिलेख में इतिहास उद्धृत है- ई. पूर्व तीसरे शताब्दी में चन्द्रगुप्त मौर्य के राष्ट्रिय पुष्यगुप्त ने सुदर्शन तालाब का निर्माण करवाया, उसके ५० वर्ष बाद अशोक मौर्य के प्रान्तीय यवन राज तुषारस्फ ने इसमें जल निकासी के लिये नालियाँ बनवाईं।
११. शकवंश से सम्बन्धित राजा
१२. संस्कृत गद्य का श्रेष्ठ उदाहरण है।
१३. यह अभिलेख सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है।
खारवेल का हाथी गुम्फा अभिलेख-
१. स्थान- भुवनेश्वर के निकट उदयगिरि पहाडी
२. लिपि- ब्राह्मी
३. भाषा- संस्कृत
४. काल- प्रथम- शदी ई.पू.
५. विषय- खारवेल की जीवन घटना
६. खारवेल चेदीवंश का था, कलिंगाधिपति उपाधि थी।
७. खारवेल का २५ वर्ष में राज्याभिषेक हुआ।
८. खारवेल का शातकर्णी से विरोध था।
९. इसमें खारवेल के जीवन के प्रारम्भिक १३ वर्षों का वर्णन
१०. इसमें खारवेल की तीन पीढी़यों का वर्णन है।
समुद्रगुप्त का प्रयागस्तम्भ अभिलेख
१. स्थान- प्रयाग (मूलतः कौशम्बी)
२. भाषा- संस्कृत
३. लिपि- ब्राह्मी
४. काल- ५-७६
५. विषय- समुद्रगुप्त का जीवन वर्णन
६. हरिषेण ने इसे उत्कीर्ण कराया “हरिषेण की प्रयाग प्रशस्ति”
चन्द्रगुप्त द्वितीय का वर्ष ६१ का मथुरा शिलालेख
१. स्थान- चण्डू मण्डू की वाटिका मथुरा, उत्तर प्रदेश
२. लिपि- गुप्त ब्राह्मी
३. भाषा- संस्कृत
४. समय- ३५० ई.
५. विषय- शिवलिंग तथा शिवाचार्यों के प्रति आस्था
६. इस लेख को उदिताचार्य ने लिखवाया।
७. उदिताचार्य लकुलीश सम्प्रदाय के १०वें गुरु थे इस सम्प्रदाय के प्रथम गुरु भगवान् कुशिक थे। कपिलविमल आठवें गुरु तथा उपमितविमल नवमें गुरु थे जिनकी प्रतिमायें उदिताचार्य ने गुरुमठ में लगवाई थी।
८. इसमें महापातक तथा उपपातक का वर्णन है जिसमें उपपातक की संख्या ४९ बताई।
९. इस अभिलेख को १९२८ में खोजा गया।
चन्द्र का महरौली लौहस्तम्भ लेख
१. महरौली दिल्ली
२. लिपि- ब्राह्मी
३. भाषा- संस्कृत
४. समय- ३७७-४१३
५. विषय- चन्द्रगुप्त द्वितीय की धार्मिक उपलब्धियाँ
६. इसमें संस्कृत के तीन श्लोक है।
७. अष्टधातु के स्तम्भ पर उत्कीर्ण।
८. यह चन्द्रगुप्त द्वितीय के मरणोपरान्त लिखावाया है क्योंकि इसमें “गतवतः” प्रयोग किया है।
९. इसे किसने बनवाया यह अज्ञात है।
कुमारगुप्त का बिलसद स्तम्भ लेख
१. गुप्तवंशीय अभिलेख सबसे अधिक कुमारगुप्त की शासनकाल में प्राप्त हुये जिनकी संख्या लगभग १८ थी।
२. इस अभिलेख में श्रीगुप्त से लेकर कुमारगुप्त तक के राजाओं का नाम उद्धृत है।
३. इस लेख में समुद्रगुप्त की माता व चन्द्रगुप्त की प्रथम पत्नी महादेवी कुमारदेवी के नाम का भी उल्लेख है।
४. समुद्रगुप्त की पत्नी का नाम- दत्तदेवी था जो चन्द्रगुप्त द्वितीय की जननी थी।
५. चन्द्रगुप्त द्वितीय के पत्नी ध्रुवदेवी थे जो कुमारगुप्त की माता थी।
६. यह अभिलेख ध्रुवशर्म्मा ने “मुनिवसति” मुनियों के एक आश्रम का निर्माण करवाते समय उत्कीर्ण करवाया था।
७. ध्रुवशर्म्मा कुमारगुप्त की सभा का एक सदस्य था।
कुमारगुप्त प्रथम का वर्ष १२८ का दामोदरपुर ताम्रपट्ट अभिलेख
१. स्थान- दामोदरपुर, दीनाजपुर जिला, (बांग्लादेश) यह स्थान पुण्ड्रवर्धन भुक्ति के अन्तर्गत था।
२. भाषा- संस्कृत
३. लिपि- उत्तरी ब्राह्मी
४. समय- ४४७ ई.
५. विषय- भूमि करने का वर्णन है, इसमें पंचमहायज्ञों का वर्णन है, महाभारत के दो श्लोक उद्धृत है।
६. यह अभिलेख ताम्रपट्ट पर उत्कीर्ण है।
स्कन्दगुप्त का गिरनार शिलालेख
१. स्थान- जूनागढ़ गिरनार, गुजरात
२. भाषा- संस्कृत
३. लिपि- गुप्तकालीन ब्राह्मी
४. काल- ४५५-४५७ ई.
५. अभिलेख पद्यमय ४७ श्लोकों में निबद्ध है।
६. विषय- स्कन्दगुप्त के राज्यकाल में हुणों की पराजय, प्रान्तीय शासक का स्वरूप, सुदर्शन झील के बाँध का पुनर्निर्माण, विष्णुपूजा
७. विष्णुमन्दिर चन्द्रपालित ने बनवाया जो विष्णु धर्म का अनुवायी था।
८. चन्द्रपालित गोप्ता था तथा उसका पिता भी गोप्ता था।
९. चन्द्रपालित पर्णदत्त का पुत्र था।
१०. गोप्ता एक अधिकारी होता था।
स्कन्दगुप्त का इन्दौर ताम्रपट्ट अभिलेख
१. स्थान- इन्दौर, अनूपशहर, बुलन्दशहर, उत्तरप्रदेश
२. भाषा- संस्कृत
३. लिपि- ब्राह्मी
४. समय- ४६५ ई.
५. विषय- देव विष्णु द्वारा इन्द्रपुर में सूर्य मन्दिर को अक्षयनीवी दान दिये जाने का उल्लेख
स्कन्दगुप्त का भीतरी प्रस्तर स्तम्भलेख
१. भीतरी, जिला गाजीपुर, उत्तरप्रदेश
२. भाषा- संस्कृत
३. लिपि- ब्राह्मी
४. काल- ४५५-६७
५. विषय- स्कन्दगुप्त का राजनैतिक वर्णन तथा उपलब्धियाँ का उल्लेख, पितृपुण्य के लिये शारङ्गी विग्रह प्रतिष्ठा तथा ग्राम दान
६. यह अभिलेख स्कन्दगुप्त ने विष्णुमंदिर में भगवान की प्रतिमा की स्थापना करते हुये बनवाया था।
७. इस अभिलेख से ज्ञात होता है कि श्रीगुप्त ने अश्वमेध यज्ञ की परम्परा को पुनः प्रारम्भ किया था।
तन्तुवाय श्रेणी का मन्दसौर शिलालेख
१. स्थान –दशपुर का सूर्यमन्दिर (कालान्तर में यह मन्दिर ध्वस्त हो जाने पर यह अभिलेख मन्दसौर के पास शिवना नदी के घाट की दीवार पर लगवा दिया)
२. इस अभिलेख में मन्दिर निर्माण तथा जीर्णोद्धार का वर्णन है।
३. इस समय यहाँ का शासक बन्धुवर्मा था जो विश्ववर्मा का पुत्र था।
४. बन्धुवर्मा के समय में ही सूर्यमन्दिर का निर्माण हुआ था।
प्रभावती गुप्ता का पूना ताम्रपट्ट अभिलेख
१. यह अभिलेख दो ताम्रपट्टों पर प्राप्त है।
२. इसे अहमदनगर के एक मूलनिवासी से जो पूना में आकर बस गए थे उनसे प्राप्त किया गया।
३. प्रभावती गुप्ता चन्द्रगुप्त द्वितीय तथा कुबेरनागा महारानी की पुत्री थी।
४. प्रभावती का विवाह वाकाटक नरेश रुद्रसेन से हुआ था।
५. प्रभावती के पुत्र के नाम दिवाकरसेन तथा दामोदरसेन था।
६. दिवाकरसेन की मृत्यु के बाद दामोदरसेन प्रवरसेन के नाम से गद्दी पर बैठा।
७. स्थान- पूना, महाराष्ट्र
८. भाषा- संस्कृत
९. लिपि- दक्षिण भारतीय नोकदार सिरवाली ब्राह्मी
१०. काल- १३वाँ प्रशासन वर्ष (५ शदी ई.)
११. विषय-
१. वैष्णव सन्त चनालस्वामी को उङ्गुबाण नामक ग्राम दान
२. गुप्त वंशानुक्रम
३. चन्द्रगुप्त प्रथम के वैवाहिक सम्बन्ध
४. समुद्रगुप्त का वर्णन
५. मेहरौली लेख का वर्णन
६. प्रभावती का विवाह वाकाटक राजा रुद्रसेन द्वितीय से हुआ
७. अल्पवायु में वाकाटक राजा रुद्रसेन द्वितीय की मृत्यु उपरान्त अपने पुत्रों की संरक्षिका
८. प्रवरसेन द्वितीय का नाना जिसे प्रवरसेन के लेखों में देवगुप्त कहा गया है वह समुद्रगुप्त द्वितीय है।
९. यह अभिलेख चक्रदास द्वारा खोदा।
तोरमाण का एरण अभिलेख
१. स्थान- वराहमन्दिर के स्तम्भ पर, एरण ग्राम, सागर जिला, मध्यप्रदेश
२. एरण एक सैन्य शिविर था।
३. जब यह लेख लिखा गया था तब हूणों के शासक तोरमाण ने इस सैन्य शिविर को ध्वस्त करके अपने साम्राज्य की नींव डाली थी।
४. लेख में उल्लिखित है कि महाराज मातृविष्णु तथा धन्यविष्णु ने तोरमाण को अपना स्वामी माना।
मिहिरकुल का ग्वालियर अभिलेख
१. स्थान- सागरताल, ग्वालियर
२. भाषा- संस्कृत
३. लिपि- उत्तरी ब्राह्मी
४. समय- ८८० ई.
५. विषय- इस प्रशस्ति का प्रारम्भ “ओं नमो विष्णो” मंगलाचरण से होता है, इसमें मिहिरभोज द्वारा बनाये गये विष्णुमंदिर निर्माण का वर्णन है।
६. प्रतिहार वंश का इतिहास
७. इस अभिलेख का रचयिता “बालादित्य” है।
यशोधर्मन का मन्दसौर स्तम्भलेख
१. स्थान- सोडणी नामक बस्ती , मन्दसौर, मध्यप्रदेश
२. लेख के अनुसार मिहिरकुल की यशोधर्मन के हाथों करारी हार हुई थी।
३. यशोवर्धन की वीर गाथा का अंकन इस लेख में कक्क के पुत्र वासुल ने पद्यमयी अलंकृत रचना के माध्यम से किया गया है जिसे गोविन्द नामक व्यक्ति विजय स्तम्भ पर उत्कीर्ण करवाया।
यशोधर्मन-विष्णुवर्धन का मन्दसौर स्तम्भलेख
१. यह लेख कुएँ की शिला पर उत्कीर्ण है।
२. यह लेख गोविन्द नामक व्यक्ति ने उत्कीर्ण करवाया।
३. यशोधर्मन के अमात्य धर्मदोष के कनिष्ठ भ्राता दक्ष द्वारा एक कूप निर्माण के समय यह लिखवाया था।
४. इस लेख में कूप निर्माता दक्ष के भाई धर्मदोष, पिता दोषकुम्भ तथा पितृव्य भगवद्दोष तथा उभयदत्त के अतिरिक्त दक्ष के पितामह रविकीर्ति का वर्णन है। तथा रविकीर्ति के पिता तथा पितामह का भी वर्णन प्राप्त है।
महानामन का बोधगया अभिलेख
१. स्थान- बोधगया में एक पत्थर पर उत्कीर्ण है।
२. अभिलेख में बौद्धमुनि महानामन द्वारा बुद्ध के मन्दिर बनवाने का उल्लेख है।
३. अभिलेख का आरम्भ “ओ३म्” के प्रतिक से किया गया।
४. अभिलेख में में गौतम बुद्ध के शिष्य महाकश्यप की शिष्य परम्परा का उल्लेख है।
५. यह लेख गुप्तोत्तर ब्राह्मी लिपि में लिखा गया है।
६. लेख में आम्रद्वीप का तात्पर्य श्रीलंका से है।
आदित्यसेन का अफसद शिलालेख-
१. स्थान- अफसद, नवादा, गया, बिहार
२. भाषा- संस्कृत
३. लिपि- ब्राह्मी
४. समय- ६७२ ई.
५. विषय- मगधगुप्त शासकों का इतिहास उसके प्रथम शासक कृष्णगुप्त से लेकर ८वें शासक् आदित्यसेन तक का वर्णन
६. इस लेख में आदित्यसेन द्वारा विष्णुमन्दिर, उसकी माता श्रीमती द्वारा मठ, तथा उसकी पत्नी कोणदेवी द्वारा एक तालाब बनवाने का वर्णन है।
७. आदित्यसेन उत्तरवर्ती गुप्तवंश का था।
८. इस लेख में आदित्यसेन के पूर्वजों का वर्णन है।
९. इस लेख में हर्षवर्धन से मैत्री सम्बन्धों का वर्णन।
जीवितगुप्त द्वितीय का देवबर्णारक अभिलेख
१. स्थान- देवबर्णारक, आरा, बिहार
२. इसमें जीवितगुप्त के माता-पिता इज्जादेवी- विष्णुगुप्त तथा दादा व दादी आदित्यसेन तथा कोणदेवी के नाम है।
३. यह अभिलेख नगरमुक्ति के बालवी जिले के वारुणिका ग्राम में लिखा गया।
४. गुप्त सम्राट् बालादित्य द्वारा जिस वारुणिका ग्राम का दान वरुणवासी भट्टारक भोजक सूर्यमित्र को दिया था, उसी का अनुमोदन कालान्तर में मौखरी नरेश अवन्तिवर्म्मा व ईशानवर्म्मा ने किया। इसी दान का अनुसरण जीवितगुप्त ने इस अभिलेख के माध्यम से किया।
५. प्रारम्भ में यह दान परमेश्वर बालादित्य ने भोजक सूर्यमित्र को दिया था । शर्ववर्मा के समय उसका पुत्र भोजक ऋषिमित्र इसका भोग कर रहा था। लेख लिखे जाने के समय भोजक दुर्धरमित्र दान की भूमि का स्वामी है।
ईशानवर्मन का हडहा अभिलेख
१. स्थान- हडहा, बाराबंकी, उत्तरप्रदेश
२. भाषा- संस्कृत
३. लिपि- उत्तरी लिपि
४. समय- ५५४ ई.
५. विषय- मौखरीवंश के राजाओं का परिचय ईशानवर्मन तक का वर्णन है।
६. सूर्यवर्मन द्वारा भगवान क्षेमेश्वर मन्दिर का पुनर्निर्माण
७. ईशानवर्मन का पुत्र सूर्यवर्मन था।
८. इसका लेखक रविकीर्त्ति था जो गर्ग्गटाटक निवासी कुमारशान्ति का पुत्र था।
९. इस प्रशस्ति को मिहिरवर्म्मा ने उत्कीर्ण किया
हर्ष का बांसखेडा ताम्रपट्ट अभिलेख
१. स्थान- बांसखेडा, शाहजहाँपुर, उत्तरप्रदेश
२. भाषा- संस्कृत
३. लिपि- उत्तरी ब्राह्मी लिपि
४. यह अभिलेख दो ताम्रपट्टों पर उत्कीर्ण है।
५. अभिलेख के अनुसार महाराज हर्ष ने दो ब्राह्मणों बालचन्द्र एवं भद्रस्वामी को अपने शासन के २२ वें वर्ष में दिया जिसका उद्देश्य अपने माता-पिता तथा अग्रज राज्यवर्द्धन के पुण्यों में वृद्धि हो।
६. यह लेख राज्यवर्द्धन के मरने के बाद लिखवाया है।
७. लेख में वर्द्धनवंश के राजाओं तथा उनकी रानियों का उल्लेख है-
१. नरवर्द्धन- वज्रिणीदेवी-राज्यवर्द्धन
२. राज्यवर्द्धन- अप्सरोदेवी-आदित्यवर्द्धन
३. आदित्यवर्द्धन-महासेनगुप्ता-प्रभाकरवर्द्धन
४. प्रभाकरवर्द्धन-यशोमती- राज्यवर्द्धन तथा हर्षवर्द्धन
८. भुक्ति, विषय, पथक तथा ग्राम भौगोलिक इकाईयाँ थीं।
९. विषय- हर्षवर्धन के पूर्वजों तथा उसकी उपलब्धियाँ, सैनिक शिविर से प्रसारित एक अग्रहारा दान का आदेश
पुलकेशीन द्वितीय का एहोल शिलालेख
१. स्थान- अमहोल, बीजापुर,(बादामी) कर्नाटक (मन्दिर की दिवार पर)
२. भाषा- संस्कृत
३. लिपि- ब्राह्मी
४. काल- ४९९ ई.
५. यही अभिलेख कालिदास तथा भारवि के उत्तरकाल की सीमा निर्धारित करता है।
६. विषय- पुलकेशिन द्वितीय तक चालुक्य शासकों का वर्णन, पुलकेशीन द्वितीय की कीर्ति, अमहोल गाँव में रविकीर्ति ने एक मन्दिर का निर्माण कराया था तथा उसकी दीवार पर अह अभिलेख था।
७. यह अभिलेख रविकीर्ति ने लिखा है।
८. पुलकेशीन का अपर नाम सत्याश्रय है।
९. अभिलेख में चालुक्यों की राजधानी वातापि नगरी थी।
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धन्यवाद
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