मुक्तक काव्य

मुक्तक काव्य

संस्कृत भाषा ने अपने भावों को अभिव्यक्त करने के अनेक तरीकों को स्थान दिया है जिसके कारण संस्कृत में इतनी विधाओं ने जन्म लिया जिसका अंदाजा लगाना भी जटिल है। शीर्षकाल से आजतक ऐसी अनेक विचाराभिव्यक्ति की विधाएँ हमारे सामने आई तथा उनमें से कुछ अप्रासंगिकता के साथ नष्ट भी हो गई। इन सबके अतिरिक्त आज हमारे सामने जो ग्रन्थ उपलब्ध है वे पर्याप्त विधाओं में है। आज हम जिस विधा की बात कर रहे हैं वह मुक्तक काव्य। माना जाता है कि यह संस्कृत इतिहास की प्रथम खोज रही होगी क्योंकि वेद जैसे निबद्ध ग्रन्थों में भी मुक्तक काव्यों का प्रसंग आया हुआ है। रामायण तथा महाभारत जिन्हें हम प्रबन्ध काव्य कहते है उनमें भी जनमानस तथा सभाओं में प्रयुक्त होने वाले मुक्तक काव्यों का वर्णन प्राप्त होता है। महाभारत में लिखा है- सामानि स्तुतिगीतानि गाथाश्च विविधास्तथा।  हालांकि यह सत्य है कि भामह आदि काव्यशास्त्रियों ने इसे इसकी निबद्धता के चलते काव्य श्रृंख्ला में अन्तिम स्थान दिया है पुनरपि कोई भी इससे मुंह नहीं मोड पाया है। अभिनवगुप्त का तो यह मानना था कि रस के आस्वादन में एक मात्र मुक्तक पद्य भी पूर्ण है।

मुक्तक काव्य से तात्पर्य है ऐसे काव्य जो किसी एक प्रसंगवश लिखे गये हो। रामायण, महाभारत या रघुवंश आदि काव्य में अनेक प्रसंग है, ये काव्य कथाओं से ओत-प्रोत हैं, जिसमें अनेक भाव तथा अनेक रस  है। परन्तु मुक्तक काव्य किसी एक प्रसंग, एक भाव तथा एक ही रस से निहित एक मात्र पद्य होता है। मुक्तक में एक पद्य अवश्य होता है पुनरपि मुक्तक के विकास ने इसमें कुछ और विशेषता भी सम्मिलित की है। हालांकि दण्डी आदि आचार्यों  ने ऐसी रचना को मुक्तक नहीं स्वीकार किया है। परन्तु देखा जाये तो यह सभी मुक्तक के ही प्रकार है। मुक्तक काव्य के अन्तर्गत हम इन अधोलिखित सभी काव्यों प्रकारों का ग्रहण कर सकते हैं-

1.     मुक्तक- प्रसंगवश किसी एक रस से निहित पद्य जो अपने आप में पूर्ण हो।

2.     संदानिक- दो मुक्तक पद्य जो परस्पर सम्बन्ध रखते हो।

3.     विशेषक- तीन मुक्तक पद्य जो परस्पर सम्बन्ध रखते हो।

4.     कुलक- चार मुक्तक पद्य जो परस्पर सम्बन्ध रखते हो।

5.     संघात- किसी एक प्रसंग पर रचित एक ही कवि के कुछ मुक्तक पद्य।

6.     शतक- विभिन्न प्रसंगो पर रचित एक ही कवि के लगभग १०० मुक्तक पद्य।

7.     खण्डकाव्य- यह जीवन के किसी एक अंश पर निर्भर होता है अर्थात् यह भी प्रसंगवश रचना है परन्तु इसमें महाकाव्यों के समान निबद्धता प्रतीत होती है।

8.     कोश- विभिन्न कवियों द्वारा रचित मुक्तक पद्यों का संग्रह।

9.     सहिंता- इसमें ऐसे मुक्तक होते है जो अनेक वृतांत कहते है।

10.                        गीतिकाव्य- ऐसे मुक्तक जिनका गायन के साथ अभिनय भी किया जा सकें।

अतः इस प्रकार ये सभी मुक्तक काव्य की विकसित परम्परा मात्र ही है।

यहाँ स्मरण करने योग्य मुक्तक काव्यों की सूची है-

ü अमरुकशतक- अमरुक

ü आनन्दलहरी- शंकराचार्य

ü आर्यासप्तशती- गोवर्धनाचार्य

ü ऋतुसंहार- कालिदास

ü कलाविलास- क्षेमेन्द्र

ü गण्डीस्तोत्रगाथा- अश्वघोष

ü गांगास्तव- जयदेव

ü गाथासप्तशती- हाल

ü गीतगोविन्द –जयदेव

ü घटकर्परकाव्य- घटकर्पर या धावक

ü चण्डीशतक- बाण

ü चतुःस्तव- नागार्जुन

ü चन्द्रदूत- जम्बूकवि

ü चन्द्रदूत- विमलकीर्ति

ü चारुचर्या - क्षेमेन्द्र

ü चौरपंचाशिका- बिल्हण

ü जैनदूत- मेरुतुंग

ü देवीशतक- आनन्दवर्द्धन

ü देशोपदेश- क्षेमेन्द्र

ü नर्ममाला- क्षेमेन्द्र

ü नीतिमंजरी- द्याद्विवेद

ü नेमिदूत- विक्रमकवि

ü पञ्चस्तव- श्री वत्सांक

ü पवनदूत- धोयी

ü पार्श्वाभ्युदय काव्य- जिनसेन

ü बल्लालशतक- बल्लाल

ü भल्लटशतक- भल्लट

ü भाव विलास- रुद्र कवि

ü भिक्षाटन काव्य- शिवदास

ü मुकुन्दमाल- कुलशेखर

ü मुग्धोपदेश- जल्हण

ü मेघदूत -कालिदास

ü रामबाणस्तव- रामभद्र दीक्षित

ü रामशतक-सोमेश्वर

ü वक्रोक्तिपंचाशिका- रत्नाकर

ü वरदराजस्तव-अप्पयदीक्षित

ü वैकुण्ठगद्य- रामानुज आचार्य

ü शतकत्रय- भर्तृहरि

ü शरणागतिपद्य- रामानुज आचार्य

ü शान्तिशतक- शिल्हण

ü शिवताण्डवस्तोत्र- रावण

ü शिवमहिम्नःस्तव- पुष्पदत्त

ü शीलदूत- चरित्रसुंदरगणि

ü शुकदूत- गोस्वामी

ü श्रीरंगगद्य- रामानुज आचार्य

ü समयमातृका- क्षेमेन्द्र

ü सुभाषितरत्नभण्डागार- शिवदत्त

ü सूर्यशतक- मयूर

ü सौन्दर्यलहरी- शंकराचार्य

ü स्तोत्रावलि- उत्पलदेव

ü हंसदूत- वामनभट्टबाण

 

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