दार्शनिक दृष्टि से रूपकग्रन्थों पर किये गये शोधकार्यों का सर्वेक्षण

काव्यशास्त्र के समान ही संस्कृत रूपकों पर भी दर्शन का प्रभाव रहा है। अतः यहाँ  विभिन्न विश्वविद्यालय में रूपकों पर दर्शन का प्रभाव दिखाते हुए किये गये शोध कार्यो का विवरण इस प्रकार है-

१. बृहत्रय्यां दार्शनिकं चिन्तनम्, गिरीशचन्द्र पाण्डेय, १९९८
२. नैषधीयचरितं महाकाव्यस्य दार्शनिकतत्त्वानां पर्यालोचनम्, कृष्णकुमार द्विवेदी, २०००
३. हरविजयस्य दार्शनिकमध्ययनम्, दीपचन्द जोशी, २००२
४. भासनाटकेषु दार्शनिक तत्त्वानां परिशीलनम्,गिरिजेश कुमार मिश्र, २००३
५. बुद्धचरित नैषधीयचरितयोः दार्शनिक चिन्तनम्, अवधेष कुमार पाण्डेय, १९९७
६. महाकविकालिदासविरचितमहाकाव्येषु दार्शनिकी दृष्टि, राजधर तिवारी, २००६
७. अश्वघोषकृतीनां दार्शनिकं विवेचनम्, शशिकान्त त्रिपाठी, २००७
८. १९९०, अंजना माथुर, भवभूति के नाटकों का दार्शनिक अध्ययन, दिल्ली विश्वविद्यालय
९. १९५०-६०, प्रीति मित्र, संस्कृत नाटकों में दर्शन, दिल्ली विश्वविद्यालय
१०. २०१०, लक्ष्मीकान्त ओझा, पार्थचरितामृत का साहित्यशास्त्रीय एवं दार्शनिक विश्लेषण, दिल्ली विश्वविद्यालय
११. २००७, रवि अग्रवाल, प्रमुख संस्कृत महाकाव्य में दार्शनिक बिन्दु, राजस्थान विश्वविद्यालय
१२. २००६, राकेश कुमार जैन, वीरोदय महाकाव्यस्य दार्शनिकमनुशीलनम्, राजस्थान विश्वविद्यालय
१३. १९१२, अश्वघोषस्य क्रुतीनां दार्शनिकमध्ययनम्, राष्ट्रिय संस्कृत संस्थान, इलाहाबाद
१४. १९९७, बलवन्त शर्मा, नैषधीयचरिते साहित्यदृष्ट्या भारतीयदर्शन तत्त्वानां विश्लेषणम्, श्री महावीर विश्वविद्यालय
१५. १९८९, परसराम चौहान, नैषध में दार्शनिकतत्त्व, हिमाचल विश्वविद्यालय
१६. २०००, जीतराम, सौन्दरानन्द में दार्शनिकतत्त्व, हिमाचल विश्वविद्यालय
१७. २००२, अनीता, नागानन्द में दार्शनिकतत्त्व, हिमाचल विश्वविद्यालय
१८. २००२, आशा, प्रभोचन्द्रोदय में दार्शनिक तत्त्व, हिमाचल विश्वविद्यालय
१९. २००५, नीरज, मिलिन्दपन्ह पाले के दार्शनिकतत्त्व, हिमाचल विश्वविद्यालय

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